महाद्वीपीय-विस्थापन सिद्धांत पृथ्वी के भूगर्भीय इतिहास को समझने के लिए एक महत्वपूर्ण अवधारणा है। महाद्वीपीय-विस्थापन का अर्थ है, पृथ्वी के महाद्वीपों का एक दूसरे के सापेक्ष गति करना। यह गति अत्यंत धीमी होती है, आमतौर पर प्रति वर्ष कुछ सेंटीमीटर ही, लेकिन लाखों वर्षों में यह काफी दूरी तय करती है।
महाद्वीपीय-विस्थापन सिद्धांत का प्रतिपादन किसने किया?
यह सिद्धांत अल्फ्रेड वेगनर द्वारा सन् 1912 में प्रतिपादन किया गया तथा 1924 में वेगनर नें इस सिद्धांत की कुछ मूल परिकल्पनाओं में संशोधन करते हुए इसे पुनः प्रस्तुत किया। इस सिद्धांत के परिकल्पना के अंतर्गत वेगनर ने स्पष्ट किया कि, अटलांटिक महासागर के पूर्वी और पश्चिमी तटो के बीच तटीय स्थलाकृतियों के आकार में अद्भुत समानता देखी जा सकती है।
जैसे कि- दक्षिणी अमेरिका महाद्वीप अफ्रीका के पश्चिमी भाग में अवस्थित गिनी की खाड़ी में भली भांति स्थापित किया जा सकता है। इसी प्रकार उत्तरी अमेरिका के पूर्वी तट का संबंध पश्चिमी यूरोप के तट के साथ जोड़ा जा सकता है।
इसी प्रकार पूर्वी अफ्रीका में इथियोपिया तथा इरिट्रिया को भारत और पाकिस्तान की तट रेखा से संयुक्त किया जा सकता है।
महत्वपूर्ण शब्दावलियाँ
1. पैंजिया क्या है?
पैंजिया एक विशाल महाद्वीप था जो वर्तमान मौजूदा सभी महाद्वीपों को एक साथ मिलाकर बना था। यह एक विशाल महासागर, पैंथालसा से घिरा हुआ था। यह लगभग 250 मिलियन वर्ष पहले, पेलियोज़ोइक और मेसोज़ोइक युग के दौरान मौजूद था। वर्तमान के सभी महाद्वीप पैंजिया से टूटकर ही बने हैं।
2. पैंथालासा क्या है?
पैंथालासा एक विशाल महासागर था जो पैंजिया नामक एक विशाल महाद्वीप को घेरता था। यह लगभग 250 मिलियन वर्ष पहले, पेलियोज़ोइक और मेसोज़ोइक युग के दौरान मौजूद था।
जैसे-जैसे पैंजिया का विघटन हुआ, वैसे ही पैंथालासा भी छोटे-छोटे महासागरों में विभाजित हो गया। आज, पैंथालासा का अवशेष प्रशांत, अटलांटिक, हिंद, आर्कटिक और दक्षिणी महासागर हैं।
3. टेथिस सागर क्या है?
टेथिस सागर एक लंबा और संकरा सागर था जो भूमध्य रेखा के साथ फैला हुआ था। तथा गोंडवानालैंड और लौरेशिया नामक दो महाद्वीपों के बीच स्थित था। टेथिस सागर का नाम ग्रीक पौराणिक कथाओं में एक समुद्री देवी टेथिस के नाम पर रखा गया था।
4. लारेसिया क्या है?
टेथिस सागर के उत्तर में स्थित महाद्वीपीय भू-खण्ड को लारेशिया कहते हैं। इसमें आज के उत्तरी अमेरिका, यूरोप और एशिया का उत्तरी भाग शामिल था।
5. गोंडवानालैंड क्या है?
टेथिस सागर के दक्षिण में स्थित महाद्वीपीय भू-खण्ड को गोंडवानालैंड कहते हैं। इसमें आज के दक्षिण अमेरिका, अफ्रीका, एशिया का दक्षिणी भाग और ऑस्ट्रेलिया शामिल था।
महाद्वीपीय-विस्थापन का सिद्धांत क्या है?
वेगनर का सिद्धांत है कि पृथ्वी की उत्पत्ति के समय पृथ्वी कुछ चित्र-1 की तरह दिखाई देता था। समय के साथ पैंजिया का कुछ भाग भूमध्य रेखा की तरफ खींसकने लगा। जबकि कुछ अन्य भाग पश्चिम की ओर विस्थापित होने लगा। यह प्रक्रिया कार्बोनिफेरस युग के अंतिम समय में प्रारंभ हुई, इसके बाद पैंजिया का टूटना आरंभ हो गया।
उत्तर में स्थित लारेशिया तथा दक्षिण में स्थित गोंडवानालैंड एक दूसरे के निकट आ गए और टेथिस सागर का आकार छोटा हो गया। प्रायद्वीपीय भाग उत्तर की ओर विस्थापित हुआ और लारेशिया से जाकर जुड़ गया।
इस क्रम में टेथिस सागर में उपस्थित अवसादों में वलन निर्मित होने के कारण हिमालय की उत्पत्ति हुई। इसी प्रकार इयोसीन युग में उत्तर तथा दक्षिण अमेरिका के पश्चिम दिशा में खिसकने से अटलांटिक महासागर बना।
जबकि वहीं उत्तर एवं दक्षिणी अमेरिका के पश्चिम की ओर विस्थापित होने के कारण इन महाद्वीपों के पश्चिमी किनारे पर घर्षण एवं संपीडन के कारण एंडीज और रॉकी पर्वत श्रेणियों की उत्पत्ति हुई।
इस प्रकार प्लीस्टोसीन युग में महाद्वीपों ने वर्तमान स्थिति से मिलती-जुलती अवस्थिति धारण की।
सिद्धांत के पक्ष में प्रमाण
1. तटीय आकार की सम्यता-
वेगनर के अनुसार अटलांटिक महासागर के दोनों तटों पर तटीय आकार की सम्यता पाई जाती है। दोनों तट एक दूसरे से मिलाए जा सकते हैं। जिस तरह किसी वस्तु को दो तरह से तोड़कर उसके टूटे हुए भाग से संबंधित फ्रेम को हुबहू जोड़ा जा सकता है।
उसी प्रकार उत्तरी अमेरिका के पूर्वी तट को यूरोप के पश्चिमी तट के साथ तथा दक्षिण अमेरिका के पूर्वी तट को अफ्रीका के पश्चिमी तट से मिलाया जा सकता है।
2. भू- वैज्ञानिक संरचना-
यदि दोनों ही तरफ के तटों की भू- वैज्ञानिक संरचना पर विचार किया जाए तो यहां भी अत्यधिक समानता देखी जा सकती है। डुटवाइट प्लेट दक्षिण अमेरिका के पूर्वी तथा अफ्रीका के पश्चिमीतटों की शैल संरचनाओं में समानता संबंधी निष्कर्ष प्रस्तुत किया। डुटवाइट ने अपने अध्ययन भू वैज्ञानिक सम्यता को स्वीकार किया।
3. तटों पर पाए जाने वाले जीवाश्मों तथा वनस्पतियों के अवशेषों में समानता-
अटलांटिक महासागर के दोनों ही तरफ के तटों पर पाए जाने वाले जीवाश्मों तथा वनस्पतियों के अवशेषों में पर्याप्त समानता पाई जाती है।मेजोसौरस एवं लिस्ट्रोसौरस नामक जंतु प्रजातियां तथा ग्लासोप्टैरिस नामक पादप प्रजाति का दक्षिण अमेरिका, फाकर्लैंड, अफ्रीका भारतीय प्रायद्वीप एवं ऑस्ट्रेलिया में पाया जाना, यह प्रमाणित करता है कि कभी ये स्थल आपस में संयुक्त रूप से जुड़े हुए थे।
4. हिमानीकारण का प्रभाव-
कार्बोनिफेरस युग के हिमानीकारण का प्रभाव ब्राजील, फॉकलैंड, दक्षिण अफ्रीका, प्रायद्वीपीय भारत तथा ऑस्ट्रेलिया में पाया जाना तभी संभव हो सकता है जब अतीत में यह सभी स्थलीय भाग संयुक्त रूप से ठंडे क्षेत्रों में अवस्थित हों।
महाद्वीपीय-विस्थापन के लिए कौन-कौन से बल उत्तरदायी है?
बेगनर के अनुसार जब पैंजिया में विस्थापन हुआ तो, उसमें दो दिशा में प्रवाह उत्पन्न हुआ।
- भूमध्य रेखा की ओर
- पश्चिम की ओर
वेगनर के अनुसार यह प्रवाह दो प्रकार के बलों द्वारा संभव हुआ है।
- पोलर फील्ड फोर्स:- भूमध्य रेखा की ओर प्रवाह पृथ्वी के घूर्णन गति से उत्पन्न पोलर फील्ड फोर्स द्वारा हुआ है।
- ज्वारीय बल:– महाद्वीपों का पश्चिम दिशा की ओर विस्थापन सूर्य और चंद्रमा के ज्वारीय बलों के कारण उत्पन्न हुआ। वेगनर के अनुसार ज्वारीय बल के प्रभाव से महाद्वीपों में पश्चिम की ओर विस्थापन हुआ।
महाद्वीपीय-विस्थापन सिद्धांत का मूल्यांकन
वेगनर के सिद्धांत में निम्नलिखित कमियां पाई जाती है-
- वेगनर द्वारा उल्लेखित बल महाद्वीपों की विस्थापन के लिए पर्याप्त नहीं है। चंद्रमा तथा सूर्य के ज्वारीय बल से विस्थापन तभी संभव हो सकता है, जब यह वर्तमान ज्वारीय बल से कई लाख गुना अधिक हो। इतना ज्वारीय बल होने पर पृथ्वी की घूर्णन गति ही रुक जाएगी। अतः ज्वारीय बाल आधारित व्याख्या विस्थापन की प्रक्रिया को स्पष्ट नहीं कर पाती है।
- वेगनर ने कई परस्पर विरोधाभासी विचार प्रस्तुत किया। जैसे- प्रारंभ में उन्होंने कहा कि सियाल सीमा पर बिना रुकावट तैरती अवस्था में पाया जाता है। आगे चलकर बेगनर ने कहा कि, सीमा द्वारा सियाल पर घर्षण की स्थिति निर्मित होती है।
यदि यह मान लिया जाए कि सियाल से सीमा अधिक कठोर है, तो भी यह स्पष्ट नहीं हो पता है, कि सियाल सीमा पर तैरती हुई अवस्था में कैसे हो सकती है। - अटलांटिक महासागर के दोनों तट पूर्णतय: नही मिलाए जा सकते हैं। इसी प्रकार दोनों तटों की भूगर्भीय बनावट भी हर जगह मेल नहीं खाती है।
- बेगनर ने महाद्वीपों के प्रवाह की दशा तथा तिथि पर सटीक आकलन प्रस्तुत नहीं किया है। इसके साथ ही कार्बोनिफरस युग के पूर्व पैंजिया किस प्रकार की अवस्थिति में पाया जाता था, इसे भी स्पष्ट नहीं किया है।
महाद्वीपीय-विस्थापन सिद्धांत का महत्व
महाद्वीपीय-विस्थापन सिद्धांत पृथ्वी के बारे में हमारी समझ के लिए महत्वपूर्ण है। यह हमें बताता है कि:-
- महाद्वीप स्थिर नहीं हैं, बल्कि धीरे-धीरे समय के साथ गति करते हैं।
- पृथ्वी एक गतिशील ग्रह है।
- प्लेट टेक्टोनिक्स (plate tectonics) पृथ्वी की सतह पर भूगर्भीय गतिविधियों का मुख्य कारण है।
- यह सिद्धांत वैज्ञानिकों को पृथ्वी के भूगर्भीय इतिहास, जलवायु परिवर्तन, और प्राकृतिक आपदाओं ज्वालामुखी, भूकंप आदि के बारे में अधिक जानने में मदद करता है।
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