भारत में ज्वालामुखी क्षेत्रों का वितरण

भारत में ज्वालामुखी क्षेत्रों का वितरण

वर्तमान समय में भारत की मुख्य भूमि क्षेत्र में सक्रिय ज्वालामुखी के उदाहरण लगभग नहीं पाए जाते है। किंतु अतीत समय में यहां विभिन्न क्षेत्रों में कई ज्वालामुखी उद्गार हुए हैं। यह क्षेत्र निम्नलिखित है-

डालमा क्षेत्र-

यह झारखंड राज्य के छोटानागपुर पठार पर प्रसिद्ध इस्पात शहर जमशेदपुर के पास स्थित है। इसे भारत का प्राचीनतम ज्वालामुखी क्षेत्र कहा जा सकता है। इस क्षेत्र में ज्वालामुखी का उदगार धारवाड़ युग में हुआ था। झारखंड के डालमा श्रेणी के नाम पर इस क्षेत्र को डालमा क्षेत्र के रूप में वर्गीकृत किया जाता है।

कुडप्पा, बिजावर एवं ग्वालियर क्षेत्र-

यह क्षेत्र मध्य प्रदेश में स्थित है। ये तीनों ही क्षेत्र कुडप्पा काल में होने वाले ज्वालामुखी उद्गार से संबंधित रहे हैं। इस काल में होने वाली ज्वालामुखी प्रक्रिया आर्कियन-धरवाड़ की तुलना में अपेक्षाकृत नवीन है।

मालानी एवं किरना क्षेत्र-

मालानी श्रेणी, जोधपुर के निकट एवं किरना पहाड़ी, अरावली के छोर पर स्थित है। यहां कुडप्पा काल के बाद विंध्यन काल में ज्वालामुखी उद्गार के साक्ष्य पाए जाते हैं। यह कुडप्पा की तुलना में अपेक्षाकृत नवीन है।

दक्कन लावा क्षेत्र-

यह उद्गार क्रिटीशियस काल के अंतिम चरण में हुआ था। यहां लावा का जमाव 2000 मीटर की गहराई तक पाया जाता है। ज्वालामुखी प्रक्रिया के दौरान जब जल काफी गहराई में मैग्मा से मिल जाता है एवं मैग्मा के साथ बाहर निकलता है, तो इस जल को जुबेनिल वाटर कहा जाता है।

राजमहल एवं अबोर पहाड़ियां-

यह क्षेत्र बिहार से असम तक फैला हुआ है। यहां ज्वालामुखी उद्गार की प्रक्रिया जुरासिक काल में हुई थी।

वर्तमान में उपस्थित ज्वालामुखी-

भारत में ज्वालामुखी क्षेत्रों का वितरण मुख्य रूप से दो क्षेत्रों में केंद्रित है:-

  • अंडमान और निकोबार द्वीप समूह
  • कश्मीर

अंडमान और निकोबार द्वीप समूह-

इस क्षेत्र में भारत के सभी सक्रिय ज्वालामुखी स्थित हैं। जो कि निम्नलिखित हैं-

  • बैरन द्वीप (बैरन ज्वालामुखी)
  • नारकोंडम द्वीप (नारकोंडम ज्वालामुखी)
  • कर्माटक (कर्माटक ज्वालामुखी)
  • बारातांग (बारातांग ज्वालामुखी)

ये सभी ज्वालामुखी ‘आर्क ज्वालामुखी‘ श्रेणी के अंतर्गत आते हैं। जो कि यूरेशियन और इंडो-ऑस्ट्रेलियन प्लेटों के टकराव के कारण बनते हैं।

कश्मीर:-

कश्मीर में लगभग ज्वालामुखी विलुप्त हो चुके हैं, लेकिन भूवैज्ञानिक प्रमाण, उनकी उपस्थिति का संकेत देते हैं। मुख्य ज्वालामुखी क्षेत्र निम्नलिखित हैं:-

  • पहलगाम (जम्मू और कश्मीर केंद्र शासित प्रदेश के अनन्तनाग ज़िले में)
  • सोनमर्ग (जम्मू और कश्मीर राज्य के पूर्वी हिमालयी भाग में)
  • गुलमर्ग (जम्मू-कश्मीर के बारामूला ज़िले में)

इन ज्वालामुखियों का निर्माण ‘ट्रैप ज्वालामुखी’ प्रक्रिया द्वारा हुआ था।

ज्वालामुखी क्षेत्रों का महत्व:-

  • ज्वालामुखी क्षेत्रों का अध्ययन भूवैज्ञानिक इतिहास और भविष्य की ज्वालामुखी गतिविधि की भविष्यवाणी करने के लिए महत्वपूर्ण है।
  • ज्वालामुखी क्षेत्रों में खनिज संपदा और ऊर्जा संसाधनों की भी संभावना होती है।
  • ज्वालामुखी क्षेत्र पर्यटन के लिए भी आकर्षक हो सकते हैं।

निष्कर्ष:-

भारत में ज्वालामुखी क्षेत्रों का वितरण अत्यंत सीमित है। लेकिन वे भूवैज्ञानिक और भू-आर्थिक दृष्टि से महत्वपूर्ण हैं। इन क्षेत्रों का अध्ययन और संरक्षण महत्वपूर्ण है, ताकि हम ज्वालामुखी गतिविधि के खतरों को बेहतर ढंग से समझ सकें और इन क्षेत्रों के संसाधनों का उपयोग कर सकें।

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