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मुद्रा संकुचन (Deflation)- परिभाषा, कारण और प्रभाव-

“Hello Friends, इस लेख में “मुद्रा संकुचन अथवा अपस्फिति ” (Deflation) के सभी पक्षों का वर्णन किया गया है। हम आशा करते हैं कि हमारा लिखने का तरीका आपको समझने मे सहायता करेगा। लेख को पूरा पढें और Comment में Feedback जरूर दें। Thankyou!”

मुद्रा संकुचन अथवा अपस्फिति क्या है?

मुद्रा संकुचन अथवा अपस्फिति, मुद्रास्फीति का विपरीतार्थ है, अर्थात मुद्रा की क्रय क्षमता में बढोत्तरी की दशा। यह वस्तु एवं सेवाओं के मूल्य में निरंतर कमी की दशा को संबोधित करता है।

मूल्य सामान्यत: तब नीचे आते हैं, जब समग्र आपूर्ति, समग्र मांग को पार कर जाए अथवा समग्र मांग, समग्र आपूर्ति से नीचे चली जाए। अर्थात बाजार में वस्तु की मांग कम हो, और आपूर्ती अधिक। आइए एक उदाहरण से समझने का प्रयास करते हैं-

मान लिजिए आपके पास 10 रू हैं। आज से पहले आप 10 रू में एक समोसा खाते थे, लेकिन आज आपने समोसा खाया और 10 रू दिए। तभी दुकानदार नें आपको 2रू वापस करता है। so यहां पर 10 रू की क्रय क्षमता बढ गई, क्योंकि अब आप 10 रू मेंं 1 समोसा के साथ-साथ 2रू का और भी कुछ खा सकते हैं।

मुद्रा संकुचन अथवा अपस्फिति के कारण-

मांग के नीचे आने के पीछे सामान्यत: निम्नलिखित कारण होते हैं। जिससे अपस्फिति उत्पन्न होती है—

  • अर्थव्यवस्था में तरलता का काम हो जाना।
  • बेरोजगारी की दर में बढ़ोतरी।
  • किसी देश की अर्थव्यवस्था का चरम पर पहुंच जाना।
  • किसी देश की अधिकांश जनसंख्या का वृद्धि हो जाना।

मुद्रा संकुचन के प्रभाव–

मुद्रा संकुचन के निम्नलिखित प्रभाव हो सकते है:–

मानव संबल:- डिफ़्लेशन के कारण मूल्य स्तरों में कमी होती है, जिससे लोगों की खरीदारी शक्ति बढ़ती है। यह लोगों को अधिक उत्पादों और सेवाओं की खरीद में प्रोत्साहित करता है।

निवेशों में धीमा वृद्धि:- डिफ़्लेशन की स्थिति में, लोग अधिक निवेश करने के लिए प्रेरित हो सकते हैं क्योंकि उनके पैसे की मान्यता बढ़ती है।

कारोबार और रोजगार:- डिफ़्लेशन के कारण कारोबार और रोजगार में कमी हो सकती है क्योंकि उत्पादों की मांग में कमी होती है और कारोबारी मुनाफा घट सकता है।

ऋण की ब्याज दर:– डिफ़्लेशन के समय में ऋण की ब्याज दरें कम हो सकती हैं, जो ऋण लेने वालों के लिए अच्छी खबर हो सकती है।

आर्थिक संतुलन:- डिफ़्लेशन के समय में सरकारों को आर्थिक संतुलन को बनाए रखने के लिए अपनी नीतियों को समीक्षित करने की आवश्यकता होती है।

इन प्रभावों के साथ-साथ, डिफ़्लेशन भी आर्थिक विकास और संरक्षण को लेकर चुनौतियों का सामना करवा सकता है, इसलिए सावधानी बरतना महत्वपूर्ण होता है।

मुद्रा संकुचन और मुद्रास्फिति में अंतर–

डिफ़्लेशन और मुद्रास्फीति (इंफ्लेशन) दो विभिन्न आर्थिक स्थितियाँ हैं जो मूल्य स्तरों में परिवर्तन को व्यक्त करती हैं। यहाँ दोनों के बीच कुछ मुख्य अंतर दिए जा रहे हैं:–

डिफ़्लेशन/अपस्फिति (Deflation):-

अर्थिक स्थिति:- डिफ़्लेशन के समय में मूल्य स्तरों में कमी होती है।

मुद्रा की मूल्य में गिरावट:- डिफ़्लेशन के समय में मुद्रा की मूल्य में गिरावट होती है और प्रति यूनिट में उत्पादों और सेवाओं की कीमतें कम होती हैं।

व्यापार और रोजगार:- डिफ़्लेशन के समय में व्यापार और रोजगार में कमी हो सकती है, क्योंकि उत्पादों की मांग में कमी होती है और कारोबारी मुनाफा घट सकता है।

ब्याज दरों में गिरावट:- डिफ़्लेशन के समय में ब्याज दरें कम होती हैं, जिससे ब्याज के माध्यम से धनादाय विकास होने में रुकावट हो सकती है।

मुद्रास्फीति (Inflation):-

अर्थिक स्थिति:- मुद्रास्फीति के समय में मूल्य स्तरों में बढ़ोतरी होती है।

मुद्रा की मूल्य में बढ़ोतरी:- मुद्रास्फीति के समय में मुद्रा की मूल्य में बढ़ोतरी होती है और प्रति यूनिट में उत्पादों और सेवाओं की कीमतें बढ़ती हैं।

व्यापार और रोजगार:- मुद्रास्फीति के समय में व्यापार और रोजगार में वृद्धि हो सकती है, क्योंकि उत्पादों की मांग बढ़ सकती है और कारोबारी मुनाफा बढ़ सकता है।

ब्याज दरों में वृद्धि:- मुद्रास्फीति के समय में ब्याज दरें बढ़ सकती हैं, जो ब्याज के माध्यम से धनादाय विकास को प्रोत्साहित कर सकती है।

इस प्रकार, डिफ़्लेशन और मुद्रास्फीति दोनों ही आर्थिक प्रक्रियाओं के महत्वपूर्ण पहलु हैं, जो अर्थव्यवस्था को प्रभावित करते हैं।

thankyou!

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