Cash Reserve Ratio (CRR)- नकद आरक्षी अनुपात

Cash Reserve Ratio का मतलब

सबसे पहले हम इन शब्दों के संदर्भ को समझने का प्रयास करते हैं और फिर हम जानेंगे कि Cash Reserve Ratio क्या है, इसका क्या उपयोग है, आदि

Cash (नकद)- दोस्तों आपने अपने बोल-चाल की भाषा मे कई बार नकद शब्द का प्रयोग किया होगा। यह शब्द संदर्भित करता है कि रुपया भौतिक रूप से आपके हाथ में है। जैसे- यदि आपके पास 10 रुपये का नोट है, तो इसका मतलब आपके पास 10 रुपया Cash है।

Reserve (आरक्षित)– सुरक्षित रखा गया

Ratio (अनुपात)- यहाँ पर शब्द संदर्भित करता है कि बैंक अपनी कुल जमा राशि का कितना प्रतिशत Cash के रूप Reserve रखता है।

Cash Reserve Ratio क्या है?

जैसे आपके पापा कुछ रुपया हमेसा अपने खर्च से बचाकर मम्मी के पास सुरक्षित रखते होंगे, किसी भी संकट के समय खर्च करने के लिए। ठीक उसी प्रकार बैंक भी आपातकालीन समय में उपयोग के लिए RBI के पास Reserve रखती हैं।

Cash Reserve Ratio बैंक की कुल जमाराशि (NDTL) का वह हिस्सा होता है, जिसे बैंक अनिवार्य रूप से नकद रूप में RBI के पास जमा रखती है। वर्तमान में (दिसंबर 2022) यह बैंकों के कुल जमाराशि का 4.50% है।

CRR के रूप में रखी गई धनराशि पर RBI, बैंकों को कोई ब्यान अदा नहीं करती है। इस पैसे का प्रयोग न तो बैंक करती है एवं न ही RBI कर सकती है। यह धनराशि CRR के रूप में अर्थव्यवस्था के बाहर चली जाती है।

प्रारंभ में CRR पर परिसीमन लागू होता था। RBI, CRR को 3% से नीचे एवं 15% से ऊपर नहीं ले जा सकती थी। परंतु RBI संशोधन अधिनियम (2006) के माध्यम से ये परिसीमन हटाये गये।

अत: नकद आरक्षी अनुपात, बैंकिंग प्रणाली में तरलता और स्थिरता बनाए रखने के लिए एक महत्वपूर्ण उपकरण है। यह मुद्रास्फीति को नियंत्रित करने में भी मदद करता है। RBI समय-समय पर अर्थव्यवस्था की जरूरतों के अनुसार CRR में बदलाव करता है।

CRR के लाभ-

  1. तरलता:- CRR बैंकों को नकद रुप में एक निश्चित धनराशि रखने के लिए मजबूर करता है, जिससे उन्हें आपातकालीन स्थितियों में नकदी की जरूरतों को पूरा करने में मदद मिलती है।
  2. स्थिरता:- CRR बैंकों को अत्यधिक ऋण देने से रोकता है, जिससे बैंकिंग प्रणाली में स्थिरता बनाए रखने में मदद मिलती है।
  3. मुद्रास्फीति नियंत्रण:– CRR मुद्रास्फीति को नियंत्रित करने में मदद करता है, क्योंकि यह अर्थव्यवस्था में धन की आपूर्ति को कम करता है।

CRR में बदलाव

आरबीआई समय-समय पर अर्थव्यवस्था की जरूरतों के अनुसार CRR में बदलाव करता है। यदि अर्थव्यवस्था में तरलता ज्यादा हो, जिससे मुद्रास्फीति उत्पन्न होने लगे तो RBI, CRR को बढ़ाकर अतिरिक्त तरलता को सोख लेती है। जिससे मांग में कमी आती है।

यदि अर्थव्यवस्था में मांग कम हो, तब CRR को कम कर RBI बैंकिंग व्यवस्था में अतिरिक्त धनराशि प्रवाहित करती है। CRR की गणना हर 14 दिनों पर होती है।

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