“Hello Friends, इस लेख में “भारत में बैंकों के राष्ट्रीयकरण का इतिहास” के सभी पक्षों का वर्णन किया गया है। हम आशा करते हैं कि हमारा लिखने का तरीका आपको समझने मे सहायता करेगा। लेख को पूरा पढें और Comment में Feedback जरूर दें। Thankyou!”
राष्ट्रीयकरण से तात्पर्य एक ऐसी प्रक्रिया से है, जिसमें निजी इकाई को सरकार के स्वामित्व में ला दिया जाता है। RBI भारत की केंद्रिय बैंक है।
आजादी के दौरान भारत में कार्यरत सभी बैंक निजी क्षेत्र के थे। बैंकिंग क्षेत्र में धोखाधड़ी चरम पर थी। बैंक जमा कर्ता की जमा राशि लेकर भाग जाते थे।
बैंकिंग क्षेत्र का विस्तार मात्र शहरी क्षेत्र में ही हो रहा था। ग्रामीण क्षेत्रों में उनकी स्थिति नगण्य थी। समाज का उच्च वर्ग ही बैंकिंग व्यवस्था से जुड़ा था।
अतः जमा कर्ता की जमा राशि को सुरक्षित रखने के उद्देश्य से, बैंकों का विस्तार ग्रामीण क्षेत्रों में भी करने के उद्देश्य से एवं समाज के निम्न वर्ग को भी बैंक से जोड़ने के लिए, बैंकों के राष्ट्रीयकरण की प्रक्रिया प्रारंभ की गई।
इस प्रक्रिया के अंतर्गत 1969 में 14 बड़े बैंकों, जिनके पास कम से कम 50 करोड रुपए की जमा राशि थी, उनका राष्ट्रीयकरण कर दिया गया। पुन: 1980 में 6 अन्य बड़े बैंक, जिनकी न्यूनतम जमाराशि 200 करोड रुपए थी। उनका भी राष्ट्रीयकरण कर दिया गया।
इन 20 बैंकों में से 1993 में द न्यू बैंक आफ इंडिया दिवालिया हो गई। अतः इसका विलय PNB में कर दिया गया। राष्ट्रीयकृत बैंकों की संख्या घटकर 19 हो गई।
अप्रैल 2019 को देना बैंक एवं विजया बैंक का विलय बैंक ऑफ बड़ौदा में कर दिया गया। सरकार ने विलय की इस प्रक्रिया को जारी रखते हुए राष्ट्रीयकृत बैंकों की संख्या घटकर 11 कर दिया है।
अत: SBI को साथ में लेकर वर्तमान में कुल 12 सहकारी बैंक भारत में कार्यरत हैं।
- स्टेट बैंक ऑफ़ इंडिया
- ओरिएंटल बैंक ऑफ कॉमर्स और यूनाइटेड बैंक ऑफ़ इंडिया का विलय पंजाब नेशनल बैंक में कर दिया गया।
- बैंक ऑफ बड़ौदा
- सिंडिकेट बैंक का विलय केनरा बैंक के साथ कर दिया गया।
- बैंक ऑफ इंडिया
- इलाहाबाद बैंक का विलय इंडियन बैंक के साथ कर दिया गया।
- सेंट्रल बैंक ऑफ इंडिया
- इंडियन ओवरसीज बैंक
- यूको बैंक
- बैंक ऑफ महाराष्ट्र
- पंजाब और सिंध बैंक
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