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शीत युद्ध 2.0(Cold war2.0)

“Hello Friends, इस लेख में “शीत युद्ध 2.0” के सभी पक्षों का वर्णन किया गया है। हम आशा करते हैं कि हमारा लिखने का तरीका आपको समझने मे सहायता करेगा। लेख को पूरा पढें और Comment में Feedback जरूर दें। Thankyou!”

अंतर्राष्ट्रीय व्यवस्था में वैश्विक शक्तियों का उत्थान और पतन स्वाभाविक परिघटना रही है। इसी क्रम में वर्तमान वैश्विक व्यवस्था भी एक नए संक्रमणकालीन युग में प्रवेश कर गई है।

जहां वैश्विक शक्ति के प्रमुख केंद्र अमेरिका और चीन के मध्य संघर्ष व तनाव की स्थिति विद्धमान है। इसीलिए यह शक्ति राजनीति पर आधारित नए शीत युद्ध के शुरुआत का संदेत देती है। जिसे निम्नलिखित रूपों में देखा जा सकता है

शीत युद्ध 2.0
  1. 1970 के दशक से अमेरिका और चीन अत्याधिक निकट रहे है। लेकिन वर्तमान में अमेरिका चीन को ऐसे प्रतिद्वंदी के रूप में देखता है, जो एक स्वतंत्र और मुक्त अंतर्राष्ट्रीय व्यवस्था के लिए गंभीर खतरा है। जबकि चीन के मत में वर्तमान विश्व की अधिकांश समस्याओं का मूल कारण अमेरिका है।
  2. वर्तमान में दोनों ही देश अपने वैश्विक प्रभुत्व और वर्चस्व के लिए प्रयासरत है जहां चीन बेल्ट और रोड पहल के माध्यम से एशिया के हार्टलैंड और रिमलैंड को नियंत्रित करने का प्रयास कर रहा है। वहीं अमेरिका क्वाड, ऑक्स, ब्लूडॉट नेटवर्क आदि पहलों के माध्यम से चीन की सामरिक घेरे बंदी का प्रयास कर रहा है
  3. वर्तमान विश्व में अमेरिका और चीन के मध्य आर्थिक प्रतिव्दंदिता भी देखी जा रही है, दोनों ही देश भविष्य की अर्थव्यवस्था को निर्धारित करने की इच्छुक हैं, इसलिए अमेरिका द्वारा चीन को वैश्विक आपूर्ति श्रृंखला से दूर करने का प्रयास किया जा रहा है जैसे —- 1. अमेरिका द्वारा चीन की वस्तुओं पर आयात शुल्क में वृद्धि करना। 2.कोविड के दौरान चीन से अमेरिकी कंपनियों की वापसी का होना आदि। दूसरी ओर चीन अमेरिका के समानांतर अपने सस्ते विनिर्मित्त उत्पादों के माध्यम से वैश्विक आपूर्ति श्रृंखला को नियंत्रित करने का प्रयास कर रहा है। जैसे — चीन के नेतृत्व में क्षेत्रीय व्यापक भागीदारी समझौता (RCEP का होना)
  4. वर्तमान में अमेरिका विश्व के उदारवादी लोकतांत्रिक व्यवस्था को स्थापित करने के लिए प्रयासरत है। वह अंतरराष्ट्रीय कानूनों पर आधारित विश्व व्यवस्था का समर्थक है। जबकि वह चीन को अंतरराष्ट्रीय कानूनो, संस्थाओं और लोकतांत्रिक मूल्यों के सामने बड़ा खतरा मानता है। जबकि चीन अमेरिका की पूंजीवादी व्यवस्था का प्रखर आलोचक है। वह अपने गवर्नेंस के मॉडल को संपूर्ण विश्व में उदाहरण के रूप में प्रस्तुत करता है।
  5. अमेरिका द्वारा चीन के विरुद्ध सामारिक घेरेबंदी में भारत, जापान, दक्षिण कोरिया, आस्ट्रेलिया आदि देशों का समर्थन प्राप्त किया जा रहा है। जबकि चीन भी रूस, ईरान, पाक, उत्तर कोरिया आदि देशों के साथ अपने सामरिक गठबंधन को मजबूती दे रहा है।
  6. दोनों ही देश अंतरराष्ट्रीय संस्थाओं और संगठनों को नियंत्रित करने का प्रयास कर रहे हैं। जैसे चीन ब्रिटेनबुड्स संस्थाओं के विकल्प में नव विकास बैंक, और एशियाई संरचना निवेश बैंक जैसे पहल प्रारंभ किया है, दूसरी और अमेरिका अपने प्रभुत्व वाली संस्थाओं की भूमिका को केंद्रीय बनाने का प्रयास कर रहा है।

हालांकि वर्तमान आत्मनिर्भर विश्व में न तो व्दिध्रुवीय विश्व की धारणा और न ही शीत युद्ध की धारणा व्यावहारिक है। बल्कि यह बहुध्रुवीय विश्व है। जहां राष्ट्रों के मध्य विरोधाभाषी संबंध देखे जा सकते हैं। अर्थात जहां कुछ क्षेत्रों में सहयोग है, तो कुछ क्षेत्र में तनाव।

इसलिए यह संभावना व्यक्त करना कि विश्व शीत युद्ध की गुटीय नीति में प्रवेश कर रहा है, उचित नहीं है। वर्तमान में शक्ति राजनीति प्रभावी तो है, लेकिन इसके केवल दो ही केंद्र नहीं है।

Cold War2.0

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