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भारत-इजराइल परंपरागत संबंध
भारत इजराइल के मध्य 1990 के पहले कूटनीतिक संबंध प्रभावित नहीं थे। भारत इजराइल के स्थान पर फिलिस्तीन के पक्ष का समर्थन करता था। भारत द्विराष्ट्र की धारणा के आधार पर स्वतंत्र संप्रभु फिलिस्तीन का समर्थक था ।
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भारत के अनुसार इजरायल फिलीस्तीन के मध्य 1967 के पूर्व की स्थिति को बहाल करना चाहिए। और विवादों के सैन्य समाधान के स्थान पर राजनीतिक समाधान पर बल देना चाहिए। फिलीस्तीन को समर्थन देने के पीछे निम्नलिखित कारक उत्तरदाई थे।
1. भारत मानवीय आधार पर फिलिस्तीन के प्रति अधिक संवेदनशील था। क्योंकि फिलिस्तीन में इजरायल द्वारा अनेक अवसरों पर मानवाधिकारों का उल्लंघन किया गया था।
2. भारत ऊर्जा सुरक्षा के लिए अरब देशों पर निर्भर था। ऐसे में इजरायल के समर्थन से अरब देश नाराज हो सकते थे।
3. भारत फिलिस्तीन के समर्थन के आधार पर अरब देशों से पाकिस्तान के विरुद्ध भारत के समर्थन की उम्मीद करता था।
4. भारत के घरेलू जनमत की धार्मिक संवेदनाएं भी फिलिस्तीन के पक्ष में थी।
हालांकि 1990 के बाद निम्न कारणों से भारत ने इजरायल के साथ कूटनीतिक संबंध स्थापित किया।
- सोवियत संघ के विघटन के बाद भारत के सामने रक्षा आपूर्ति का गंभीर संकट उत्पन्न हुआ। जहां इजराइल बेहतर विकल्प था।
- अरब देशों द्वारा निरंतर पाक का समर्थन और भारत विरोध की नीति अपनाई गई। इसलिए अब भारत पर अरब देशों की तुष्टिकरण का कोई दबाव नहीं था।
- 1990 के बाद अमेरिका और पश्चिमी देशों के साथ भारत के संबंध बेहतर हुए। स्वाभाविक रूप से इजरायल के साथ भी रिश्ते बेहतर हुए।
भारत- इजराइल वर्तमान संबंध
1992 के बाद इजरायल फिलीस्तीन के मध्य हाईफैनेटड नीति के कारण भारत इजराइल के साथ घनिष्टम संबंध निर्मित नहीं कर पाया। यही कारण है कि इस दौरान भारत इजराइल संबंध रक्षा केंद्रित ही रहे हैं।
लेकिन 2015 के बाद भारत इजराइल संबंध न केवल विविधिकृत हुए हैं, बल्कि संबंधों में गहनता भी देखी जा रही है।
वर्ष 2015 में भारतीय प्रधानमंत्री की इजरायल यात्रा के दौरान डी- हाईफेनेटेड नीति की घोषणा की गई। जिसके तहत भारत द्वारा अपने राष्ट्रीय हितों के अनुरूप इसराइल और अरब देशों के साथ स्वतंत्र और पृथक संबंध निर्मित करने का निर्णय लिया गया।
इसलिए दोनों देशों के मध्य भारतीय आर्थिक सामरिक निकटता के कारण इन्हें प्राकृतिक मित्र के रूप में भी देखा जा रहा है। भारत इजराइल के मध्य संबंध निम्नलिखित रूपों में है—
- वर्ष 2022-23 के दौरान दोनों देशों के मध्य द्विपक्षीय व्यापार लगभग 10 बिलियन डॉलर का रहा है। जहां भारत व्यापार अधिशेष की स्थिति में है। दोनों देशों के मध्य द्विपक्षीय व्यापार विविधीकृत हैं। जिसमें इलेक्ट्रॉनिक मशीनरी, उच्च तकनीकी उत्पाद संचार प्रणाली और चिकित्सीय उपकरण आदि शामिल है। वर्तमान में दोनों देशों के मध्य मुक्त व्यापार समझौते के लिए भी वार्ता हो रही है।
- इजरायल द्वारा भारत को अत्यधिक संवेदनशील हथियार उपलब्ध कराया जाता है। इजरायल द्वारा भारत को फाल्कन, अवास्क बाराक मिसाइल आदि हथियार उपलब्ध कराए गए हैं। दोनों देशों के मध्य रक्षा सहयोग के लिए 10 वर्षीय रूपरेखा भी निर्मित हुआ है। वर्तमान में सिपरी की रिपोर्ट के अनुसार भारत इजराइल कुल हथियार निर्यात का 37% प्राप्त करता है। वर्तमान में रक्षा संबंध केवल क्रेता विक्रेता तक सीमित नहीं है, बल्कि संयुक्त उद्यम तथा निवेश के लिए भी सहयोग कर रहे हैं जैसे —
- बराक 8 मिसाइल का विकास दोनों देश मिलकर कर रहे हैं।
- इसराइल मेक इन इंडिया पहल के तहत रक्षा क्षेत्र में निवेश कर रहा है। जैसे (MRSAM)
3. भारत इजराइल रक्षा सहयोग, दक्षिण एशिया में चीन और पाक के विरुद्ध भारत के बचाव को प्रभावी बना रहा है। इजराइल से प्राप्त अत्याधुनिक हथियार हिंद प्रशांत क्षेत्र में सुरक्षा प्रदायक के रूप में भारत की क्षमता का विस्तार कर रहे हैं।
4. भारत इजराइल अब महत्वपूर्ण सामरिक भागीदार हैं। भूमध्य सागर और मध्य पूर्व एशिया में भारत के प्रभाव विस्तार के लिए इजराइल आवश्यक है। तो वही हिंद प्रशांत क्षेत्र में इजरायल के प्रभाव विस्तार के लिए भारत। इसलिए दोनों देश पश्चिम एशियाई क्वाड के रूप में लोकप्रिय I2U2 महत्वपूर्ण सामरिक भागीदार है।
दोनों देशों के मध्य होमलैंड सिक्योरिटी समझौता हुआ है। जिसके तहत सीमा पार आतंकवाद, खुफिया सूचनाओं के आदान-प्रदान, पुलिस आधुनिकीकरण आदि क्षेत्रों में सहयोग हो रहा है। भारत इजराइल के मध्य शुष्क कृषि और सूक्ष्म सिंचाई के क्षेत्र में भी महत्वपूर्ण सहयोग हो रहे हैं ।भारत और यहूदियों के मध्य संबंध ऐतिहासिक रहे हैं। और वर्तमान में इजराइल में लगभग 85000 भारतीय मूल के यहूदी निवास कर रहे हैं। जो दोनों देशों के मध्य सांस्कृतिक संपर्क का प्रमुख आधार है।
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